Sunday, December 22, 2024

हावड़ा ब्रिज का इतिहास जानकार चौक जाएंगे आप , इतने बड़े ब्रिज जिसका आज तक उद्घाटन नहीं हुआ

दुनियाभर में ऐसे कई पुल हैं जो अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। कहीं-कहीं कोई पुल उस देश की शान बन जाती है । ऐसा ही एक पुल भारत में भी ही है, जो सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध है। हैरानी की बात तो ये है कि इस विश्व प्रसिद्ध इस पुल का आज तक बिना उद्घाटन किए ही कई वर्षों से लाखों टनों का बोझ उठाते हुए चालू है ।

साल 1936 में हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य शुरू हुआ और 1942 में यह पूरा हो गया. उसके बाद 3 फरवरी, 1943 को इसे जनता के लिए खोल दिया गया. उस समय यह पुल दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था. इस पुल की खासियत ये है कि पूरा ब्रिज महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पायों पर टिका है.

: यूं तो भारत और दुनियाभर के देशों में न जाने कितने पुल हैं, लेकिन इनमें से कई पुल ऐसे हैं, जो अपनी किसी खास बात के लिए दुनियाभर में एक अलग पहचान रखते हैं. कई पुल तो अपने देश की शान भी कहलाते हैं. ऐसा ही एक पुल अपने देश भारत में भी है. यह पुल सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में मशहूर है. हैरानी की बात तो ये है कि वर्ल्ड फेमस पुल का आज तक उद्घाटन नहीं हुआ. इस पुल से जुड़ी कई रोचक बात हैं, जो आज हम इस आर्टिकल के जरिए आपको बताएंगे…
बम गिरने बाद भी नहीं बिगड़ा कुछ

दरअसल, यहां बात हो रही है कोलकाता के हावड़ा ब्रिज की, यह ब्रिज हमेशा से ही कोलकाता का पहचान रहा है. हावड़ा ब्रिज को बने करीब 80 साल हो चुके हैं. लेकिन, आज भी यह ज्यों का त्यों खड़ा है. यहां तक कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दिसंबर 1942 में जापान का एक बम इस ब्रिज से कुछ ही दूरी पर गिरा, लेकिन तब भी इस ब्रिज का बाल भी बांका नहीं हुआ.

जहाजों की आवाजाही न रुके इसलिए बनाई यह योजना

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उन्नीसवीं सदी के आखिरी दशकों में ब्रिटिश इंडिया सरकार ने कोलकाता और हावड़ा के बीच बहने वाली हुगली नदी पर एक तैरता हुआ पुल बनाने की योजना बनाई. दरअसल, उस दौर में हुगली नदी में रोजाना कई जहाज आते-जाते थे और खंभों वाला पुल इन जहाजों की आवाजाही में रुकावट पैदा कर सकता था, इसलिए 1871 में हावड़ा ब्रिज एक्ट को पास किया गया.

हावड़ा ब्रिज का निर्माण कार्य साल 1936 में शुरू हुआ और 1942 में पूरा हुआ. उसके बाद 3 फरवरी, 1943 को आम जनता ने इसका इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. उस समय यह दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था. कविगुरु रवींद्र नाथ के नाम पर साल 1965 में इसका नाम रवींद्र सेतु रखा गया.

टाटा ने की थी स्टील की सप्लाई

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, हावड़ा ब्रिज को बनाने में 26,500 टन स्टील का इस्तेमाल हुआ था, जिसमें से 23,500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी. इसकी खासियत यह है कि यह पूरा ब्रिज महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पिलरों पर टिका हुआ है. इन दोनों पिलरों के बीच की दूरी डेढ़ हजार फीट है. इसके अलावा ब्रिज को सहारा देने के लिए नदी में कहीं कोई पिलर नहीं है.

कीलों का हुआ था इस्तेमाल

हावड़ा ब्रिज की एक खास बात यह भी है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए नट-बोल्ट नहीं, बल्कि धातु की बनी कीलों का इस्तेमाल किया गया था. साल 2011 में एक रिपोर्ट में सामने आया कि तंबाकू थूकने की वजह से ब्रिज के पायों की मोटाई कम हो रही है. जिसके बाद पुल की सुरक्षा के लिए इसके स्टील के पायों को नीचे से फाइबर ग्लास से ढंक दिया गया. जिसमें करीब 20 लाख रुपये खर्च हुए ।

संग्रहकर्ता – आर के प्रियदर्शी

 

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